क्यों विलक्षण थें स्वामी विवेकानंद – जानिये कुछ रोचक तथ्य

स्वामी विवेकानंद, जिनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता (तब कलकत्ता) में हुआ, भारतीय संस्कृति और अध्यात्म के महान प्रचारक थे। उनके जीवन से जुड़े कई प्रेरणादायक और रोचक पहलू हैं, जिनसे उनके व्यक्तित्व की गहराई को समझा जा सकता है। यहां कुछ तथ्यात्मक बातें प्रस्तुत की जा रही हैं:

1. उनकी विलक्षण स्मरणशक्ति

स्वामी विवेकानंद को अद्भुत स्मरणशक्ति का वरदान था। कहा जाता है कि वे जो कुछ भी एक बार पढ़ते थे, उसे हमेशा के लिए याद रख लेते थे। एक बार उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस ने उनकी इस क्षमता को पहचानते हुए कहा, "नरेन (विवेकानंद) के दिमाग में ज्ञान का महासागर है।"

स्वामी विवेकानंद
फोटो - स्वामी विवेकानंद

कई बार उन्होंने बड़े ग्रंथों और शास्त्रों को केवल एक बार पढ़कर हू-ब-हू उद्धृत किया। शिकागो के विश्व धर्म महासभा में भी उनकी इसी क्षमता ने श्रोताओं को चकित कर दिया था।

2. संगीत और कला प्रेमी

स्वामी विवेकानंद केवल एक महान दार्शनिक और योगी ही नहीं, बल्कि एक कुशल संगीतकार भी थे। वे सितार और तबला बजाने में निपुण थे और शास्त्रीय भारतीय संगीत के गहरे प्रेमी थे। उनकी गायन शैली में भक्ति और गहराई का अद्भुत सामंजस्य था। श्री रामकृष्ण परमहंस के साथ अपने शुरुआती दिनों में, स्वामी विवेकानंद ने कई बार संगीत के माध्यम से भावनाओं और भक्ति का अद्वितीय प्रदर्शन किया।

3. खेलों और फिटनेस के प्रति रुचि

स्वामी विवेकानंद का मानना था कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ आत्मा निवास करती है। वे युवाओं को शारीरिक रूप से सशक्त बनने की प्रेरणा देते थे। वे खुद कुश्ती, तैराकी और व्यायाम में रुचि रखते थे। उन्होंने एक बार एक युवा से कहा था, "गीता पढ़ने से पहले फुटबॉल खेलो। इससे तुम भगवान के ज्यादा करीब आओगे।" उनका आशय यह था कि एक मजबूत और आत्मनिर्भर व्यक्ति ही सही मायने में धर्म और अध्यात्म को समझ सकता है।

फोटो - स्वामी विवेकानंद

4. उनका नाम 'विवेकानंद' कैसे पड़ा?

स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। लेकिन उनके नाम 'विवेकानंद' की कहानी भी रोचक है। जब वे अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के विचारों का प्रचार करने के लिए भारत भ्रमण कर रहे थे, तो उनकी गहरी बुद्धिमत्ता और विवेकशीलता ने सभी को प्रभावित किया। "विवेक" का अर्थ है बुद्धिमत्ता और "आनंद" का अर्थ है आनंद। इसलिए राजा अजीत सिंह ने उन्हें यह नाम दिया।

5. आध्यात्मिकता के साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण

स्वामी विवेकानंद ने हमेशा वैज्ञानिक दृष्टिकोण को महत्व दिया। वे तर्क और प्रमाण को बहुत महत्व देते थे। उनके प्रवचनों में अक्सर विज्ञान और आध्यात्मिकता का संतुलन देखने को मिलता था।

निकोलस टेस्ला, जो कि आधुनिक विद्युत विज्ञान के अग्रणी वैज्ञानिक माने जाते हैं, स्वामी विवेकानंद से बहुत प्रभावित थे। दोनों ने ऊर्जा और ब्रह्मांड की शक्तियों पर गहरी चर्चा की थी। टेस्ला ने विवेकानंद के विचारों को विज्ञान में लागू करने की कोशिश की।

फोटो - स्वामी विवेकानंद

6. मानवता के प्रति उनकी करुणा

स्वामी विवेकानंद के लिए धर्म का वास्तविक अर्थ मानवता की सेवा करना था। उन्होंने कहा था, "जब तक गरीबों के आंसू पोंछे नहीं जाते, तब तक भगवान मंदिर में नहीं, बल्कि दुखी और जरूरतमंद लोगों के बीच हैं।" एक बार किसी गांव में उन्होंने एक भूखे व्यक्ति को भोजन कराया। जब उनसे पूछा गया कि क्या यह धर्म है, तो उन्होंने कहा, "भूखे को भोजन कराना ही सबसे बड़ा धर्म है।"

7. उनकी व्यावहारिक शिक्षा

स्वामी विवेकानंद का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि व्यक्ति को आत्मनिर्भर और चरित्रवान बनाना होना चाहिए। उन्होंने बार-बार कहा, "शिक्षा वही है, जो भीतर छिपी हुई पूर्णता को प्रकट करे।"

फोटो - स्वामी विवेकानंद

8. शिकागो में दिया गया ऐतिहासिक भाषण

11 सितंबर 1893 को शिकागो के विश्व धर्म महासभा में स्वामी विवेकानंद का उद्घाटन भाषण भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का प्रतीक बन गया। जब उन्होंने अपने पहले शब्द "सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका" कहे, तो पूरा सभागृह तालियों की गूंज से भर गया, जो लगभग दो मिनट तक चली। यह उनके गहरे मानवीय दृष्टिकोण और विश्वबंधुत्व की भावना को दर्शाता है।

इस भाषण में उन्होंने यह बताया कि भारत का धर्म "सभी धर्मों का सम्मान" करता है और हर व्यक्ति को अपने तरीके से ईश्वर की आराधना करने की स्वतंत्रता है। उनकी वाणी ने न केवल भारत के आध्यात्मिक ज्ञान को विश्व मंच पर प्रस्तुत किया, बल्कि विभिन्न धर्मों के बीच सद्भाव और सह-अस्तित्व की भी शिक्षा दी।

फोटो - स्वामी विवेकानंद (शिकागो)

यह भाषण न केवल उनके जीवन का, बल्कि भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का भी महत्वपूर्ण मोड़ था। इससे विश्व ने भारत को केवल एक प्राचीन सभ्यता के रूप में नहीं, बल्कि एक ज्ञान और अध्यात्म की धरती के रूप में देखा।

यह भाषण आज भी प्रेरणा का स्रोत है और स्वामी विवेकानंद की प्रखर बौद्धिकता और करुणा का परिचय देता है।

9. उनका अंतिम संदेश

स्वामी विवेकानंद ने केवल 39 वर्ष की आयु में 4 जुलाई 1902 को महासमाधि ली। उनकी मृत्यु से एक दिन पहले, उन्होंने कहा था, "मुझे विश्वास है कि मैं 40 साल की उम्र तक जीवित नहीं रहूंगा।" उनके यह शब्द उनके शिष्यों के लिए भविष्यवाणी जैसे साबित हुए।


स्वामी विवेकानंद के जीवन और विचारों को बेहतर समझने के लिए कई प्रेरणादायक किताबें उपलब्ध हैं। नीचे कुछ बेस्टसेलर किताबों की सूची दी गई है:

1. The Complete Works of Swami Vivekananda

  • लेखक: स्वामी विवेकानंद
  • यह किताब स्वामी विवेकानंद के सभी प्रमुख लेखों, भाषणों, और पत्रों का संग्रह है। यह उनकी गहन विचारधारा और जीवन दर्शन को समझने के लिए एक अनमोल खजाना है।

2. Swami Vivekananda: A Biography

  • लेखक: स्वामी निखिलानंद
  • यह पुस्तक स्वामी विवेकानंद के जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं और उनके ऐतिहासिक कार्यों पर प्रकाश डालती है।

3. व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास

  • लेखक: स्वामी विवेकानंद
  • स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखित एक प्रेरणादायक पुस्तक है, जो आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास, और चरित्र निर्माण के महत्व पर प्रकाश डालती है। यह पुस्तक भारतीय युवा और समाज को अपने भीतर छिपी अपार संभावनाओं को पहचानने और उन्हें विकसित करने की प्रेरणा देती है।

इन पुस्तकों को पढ़कर आप स्वामी विवेकानंद की गहरी विचारधारा, उनके जीवन के आदर्शों और उनके संदेशों को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं।


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